श्री जगतदास जी गुरू महाराज जी

परम पजनीय परम तपस्वी श्री श्री जगतदास गुरू महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम !!

श्री महाराज जी का जन्म 1924 में गांव भंवोताड़ जो कि अब जि़ला होशियारपुर में हैं, में हुआ। इनके पिता जी का नाम श्रीमान छज्जू राम और माता जी का नाम श्रीमति शंकरी देवी था। इनके तीन भार्इ और एक बहन है। जिनमें गुरू महाराज जी तीसरे नम्बर पर थे। इनका बचपन का नाम दयालु था। बचपन से बड़े शांत स्वभाव के थे। यह अपने परिवार से बिल्कुल स्वभाव में बिल्कुल अलग थे। वह अपने घर के काम काज में अपने पिता जी के साथ खेतीबाड़ी करते थे परन्तु इनका ध्यान र्इश्वर की ओर ज्यादा रहता था। जब इनके पिता जी ने इनको शादी करने के लिये कहा तो इन्होने शादी के लिए मना कर दिया और दरबार बाबा घाटी में निर्वाण श्री श्री हंस दास महाराज जी के पास आ गये और कहने लगे कि मुझे शादी नही करनी है बलिक मुझे अपने चरणों में रख लीजिए मैं सेवा करना चाहता हूं। तब श्री हंस दास जी महाराज जी ने कहा कि आप अपने माता पिता की आज्ञा ले लीजिए तब गुरू जी ने अपने माता पिता जी को कहा कि मैं दरबार बाबा घाटी में भजन सेवा करना चाहता हूं मुझे वहां रहने की आज्ञा दीजिए। तब उनके माता पिता जी ने उनकी शादी न करके उनको वहां रहने की आज्ञा दी। तब से गुरू महाराज जी ने श्री हंस दास जी महाराज जी को अपना भगवान मान लिया और उनकी आज्ञा अनुसार भजन सेवा में लग गये। तब फिर गुरू महाराज जी श्री हंस दास महाराज जी से नाम दीक्षा प्राप्त कर ली और उनकी आज्ञा अनुसार भजन सेवा में लग गये। वह गुरू जी महाराज जी का बड़ा आदर सत्कार करने लगे। उन्होने महाराज जी की आज्ञा अनुसार गउशाला में सेवा की और खेती बाड़ी में भी कार्य करने लगे। इसी तरह समय बीतता गया और 12 वर्ष बाद श्री हंस दास जी महाराज जी ने उनको अपना शिष्य बना लिया और उनका नाम दयालु से बदल कर श्री जगत दास रख दिया। बड़े महाराज जी भी श्री जगतदास जी की सेवा से बड़े प्रसन्न होते गये। उसके बाद उन्होने बीच में ही श्री जगत दास जी महाराज जी को गांव घेरिया जहां महाराज जी के खेत हैं वहां पर भजन सेवा तप करने के लिए 3 वर्ष के लिए भेज दिया। गांव घेरिया जो कि घने जंगल में सिथत है वहां पर अपने गुरू महाराज जी की आज्ञा के अनुसार पूरी र्इमानदारी से अकेले ही भजन सेवा करते रहे। तब तीन वर्ष बाद वह फिर दरबार बाबा घाटी में लौट आये। फिर बड़े महाराज जी ने श्री गुरू जी को लंगर का कार्य सौंप दिया।

ghatiwale baba ji
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मंत्र सिमरण करे -- मौक्श्र का मार्ग ।।